आलस को धूल चटाना सीखो | Budhha Story on Lazineness1 min read

एक बार आलस से परेशान एक व्यक्ति गौतम बुद्ध के पास आता है और कहता है, बुद्ध मेरे अंदर बहुत आलस है मैं इस हालत की वजह से अपने जीवन में ऐसा कुछ नहीं कर पा रहा जो मैं करना चाहता हूं, इस हालत ने मुझे बहुत परेशान कर रखा है इसकी वजह से मैं अपने जीवन में उन्नति नहीं कर पा रहा हूँ कृपया आप मुझे इस आलस से छुटकारा पाने का कोई तरीका बताएं। यह सुन गौतम बुद्ध मुस्कुराते हैं और उस आलसी व्यक्ति से कहते हैं,

तुम्हें कैसे पता कि तुम्हारे अंदर आलस  है? उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध केवल मैं ही नहीं बल्कि मेरा पूरा परिवार भी यही कहता है कि मैं एक आलसी व्यक्ति हूँ। 

बुद्ध ने कहा, क्या तुम मुझे इसका प्रमाण दे सकते हो कि तुम एक आलसी व्यक्ति हो? 

उस आलसी व्यक्ति ने कहा हाँ बुद्ध मैं दे सकता हूं! 

बुद्ध ने कहा फिर प्रमाण दो, उसके बाद मैं बताऊंगा की कैसे आलस को धूल चटाना है।

उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध मैं यह तो जानता हूं कि सुबह उठना मेरे स्वास्थ्य और मेरे मन दोनों के लिए ही लाभकारी है लेकिन मेरा आलस मुझे सुबह जल्दी उठने ही नहीं देता बुद्ध ने कहा अच्छा परंतु क्या तुम्हें पता है कि आलस होता क्या है? उस आलसी व्यक्ति ने कहा बुद्ध मुझे यह तो नहीं मालूम की आलस होता क्या है लेकिन यह जो कुछ भी है बहुत बुरा है। बुद्ध ने कहा आलस एक मानसिक अवस्था है एक भाव है एक विचार है जिसे जाने अनजाने में हम इंसान खुद ही अपने अंदर पैदा करते हैं। आलसी व्यक्ति ने कहा परंतु वह कैसे? बुद्ध ने कहा पहले तो तुम यह समझो कि हमारे भीतर आलस दो कारण से पैदा होता है, 

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पहला कारण है शारीरिक और दूसरा कारण है मानसिक। 

(1) शारीरिक आलस का पहला कारण है भोजन 

जब हम कोई ऐसा भोजन ग्रहण करते हैं जिसमें खुद कोई जीवन नहीं है तो यह भोजन हमारे शरीर के लिए बोझ बन जाता है और फिर यह हमारे अंदर अलस पैदा करता है क्योंकि हमारा शरीर भोजन से मिलने वाली ऊर्जा के सहारे चलता है और फिर हम इसे जैसा भोजन देते हैं वैसे ही ऊर्जा हमारे शरीर को भी प्राप्त होती है इसलिए अगर तुम आलस से बचना चाहते हो तो आसानी से पचने वाले और सीधे प्रकृति से प्राप्त होने वाले भोज्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल कर दो। 

(2) शरीर के स्तर पर आलस का दूसरा कारण है गलत तरीके से चलना, बैठना और लेटना। 

गौतम बुद्ध ने आश्रम के भिक्षुओं की तरफ इशारा करते हुए उस आलसी व्यक्ति से कहा अगर तुम ध्यान से देखा तो तुम्हें आश्रम के इन भिक्षुओ के चलने बैठने और लेटने की अवस्थाओं में एक विशेष प्रकार का संतुलन नजर आएगा जब यह चलते हैं तो उनके पैरों के बीच एक तालमेल होता है जब यह बैठते हैं तो इनके रीढ़ की हड्डी एकदम सीधी होती है और गर्दन थोड़ी सी ऊपर होती है और जब यह लेटते हैं तो इनका शरीर एकदम शीतल होता है उनके शरीर के किसी भी अंग पर कोई तनाव नहीं होता जिसके कारण यह एक गहरी और आरामदायक नींद ले पाते हैं।  उसे आलसी व्यक्ति ने पूछा बुद्ध क्या पर्याप्त नींद लेना भी उतना ही जरूरी है? 

बुद्ध ने कहा ना कम ना ज्यादा हमेशा ही पर्याप्त मात्रा में सोना लाभकारी होता है अगर तुम आज रात पर्याप्त नींद नहीं लेते तो तुम्हारा कल का पूरा दिन थकान और आलस से भरा होगा इसलिए पर्याप्त नींद भी उतनी ही जरूरी है। 

आलसी व्यक्ति ने कहा हां बुद्ध यह तो मैंने भी महसूस किया है बुद्ध ने कहा, 

(3) शरीर के स्तर पर आलस का तीसरा कारण है सुबह जल्दी ना उठना 

यह सुन उस आलसी व्यक्ति ने कहा मैं तो सुबह जल्दी उठ ही नहीं पाता हूँ।  

बुद्ध ने कहा तुम सुबह जल्दी तब उठ पाओगे जब तुम रात में जल्दी सोओगे बुद्ध ने आश्रम के भिक्षुओं की तरफ इशारा करते हुए कहा इन भिक्षुओं को देखो इन्होंने रात्रि में अपने सोने का एक निश्चित समय निर्धारित कर रखा है और यही कारण है कि यह रोज प्रातः काल जल्दी उठने में सक्षम हो पाते हैं हर एक बौद्ध भिक्षु को अनुशासन का पालन करना होता है और यही अनुशासन उनके जीवन में संतुलन लाता है कुछ लोग अनुशासन को एक बंधन समझते हैं उन्हें लगता है कि अनुशासन उन्हें बांधता है लेकिन सच्चाई यह है कि अनुशासन हमें बांधता नहीं बल्कि स्वतंत्र करता है इसलिए अगर तुम शारीरिक स्तर पर आलस से छुटकारा पाना चाहते हो तो खुद को अनुशासन में डालो एक निश्चित दिनचर्या का पालन करो। 

उस आलसी व्यक्ति ने कहा लेकिन बुद्ध शुरुआत कहां से करें सही तरह का भोजन करने से सही तरह से बैठने लेटने और चलने से या फिर सुबह जल्दी उठने से बुद्ध ने कहा शुरुआत अभी से करो जो भी तुम इस समय कर रहे हो उसे पूरे ध्यान से करो। 

पहले तुम मन के स्तर पर आलस को समझो, बुद्ध ने कहा 

(1) मन के स्तर पर आलस का पहला कारण है हमारी पुरानी गलत धारणाएं 

जब हम किसी काम के लिए खुद को काबिल नहीं समझते तब हमारे भीतर आलस पैदा होता है अगर हमारे मन ने यह विश्वास कर लिया कि पिछली बार की तरह इस बार भी मैं इस काम में असफल ही रहूंगा तो उस काम को करने में हमें आलस आएगा जबकि हम खुद को यह नहीं समझा पाए कि पिछली बार और इस बार में बहुत फर्क है अब हम मानसिक तौर पर वह नहीं है जो पहले थे, हमने पिछली हार से बहुत कुछ सीखा भी है इसलिए मानसिक आलस से बचने के लिए सबसे पहले खुद पर विश्वास करना सीखो। 

(2) मानसिक आलस का दूसरा कारण है छोटी सोच वाले और आलसी व्यक्तियों का साथ करना 

कई बार ऐसा होता है कि हम खुद आलसी नहीं होते लेकिन कुछ आलसी और कामचोर लोगों के साथ रहते-रहते हम खुद भी आलसी और कामचोर बन जाते हैं। 

यह सुन उस आलसी व्यक्ति ने कहा हां बुद्ध यह तो मैंने भी महसूस किया है बुद्ध ने कहा तो सबसे पहले आलसी और कामचोर लोगों की संगति में रहना छोड़ो बुद्ध ने आगे कहा, 

(3) मानसिक आलस का तीसरा कारण है काम को टालने की आदत 

काम को टालना आलस और मानसिक तनाव का सबसे बड़ा कारण है शुरुआत में तो हमें पता नहीं चलता लेकिन धीरे-धीरे यह आदत हमारे अंदर घर कर जाती है और यह एक अकेली आदत ही किसी भी इंसान की जिंदगी बर्बाद करने के लिए काफी है। 

इसलिए जो काम आज किया जा सकता है उसे कल पर कभी ना डालें बुद्ध ने कहा, 

(4) मानसिक अलस का चौथा कारण है लक्ष्य का स्पष्ट न होना 

मान लो तुम किसी बड़े से रेगिस्तान में फंस चुके हो और तुम्हें जोरों की प्यास लगी है तब तुम क्या करोगे? 

उस आलसी व्यक्ति ने कहा मैं पानी की तलाश करूंगा मैं कोशिश करूंगा कि जल्द से जल्द रेगिस्तान के पास वाले गांव में पहुंच जाऊं बुद्ध ने कहा लेकिन अगर बहुत कोशिश करने के बाद भी तुम्हें पानी ना मिले तब? 

उस आदमी ने कहा मैं तब भी प्रयास करता रहूंगा क्योंकि मेरे पास और दूसरा कोई विकल्प ही नहीं होगा। 

गौतम बुद्ध ने मुस्कुराते हुए कहा इंसान आलस तभी करता है जब उसके पास कोई स्पष्ट लक्ष्य ना हो या फिर उसके समक्ष बहुत से विकल्प उपलब्ध हो इसलिए लक्ष्य का निश्चित होना परम आवश्यक है अगर तुम सुबह उठकर व्यायाम नहीं कर पा रहे हो तो उसका कारण तुम्हारी नजर का स्पष्ट न होना है। बुद्ध ने आगे कहा,

(5) मन के स्तर पर आलस का पांचवा कारण है किसी काम को करने की कोई बड़ी वजह ना होना 

मान लो तुम बहुत से कीमती गहने लेकर एक सुनसान रास्ते से गुजर रहे हो तुम चलते-चलते बहुत थक चुके हो और तुम्हारा बैठने का मन कर रहा है और तुम एक बड़े से पेड़ के नीचे आराम करने के लिए बैठ जाते हो तुम अभी बैठे ही थी कि तुमने देखा कि दूर से कुछ डाकू तुम्हारी तरफ भागे आ रहे हैं तो क्या ऐसी स्थिति में भी तुम्हारा आलस तुम्हें भागने से रोक सकेगा नहीं ना तो मेरी एक बात को समझो तुम्हारा आलस केवल तुम्हें उन्हीं कामों को करने से रोक सकता है जिसको करने की तुम्हारे पास कोई बड़ी वजह नहीं है। आलसी व्यक्ति कहता है आपका बहुत-बहुत धन्यवाद अब से मुझे आलस का सारा खेल समझ आ गया। गौतम बुद्ध कहते हैं मेरी एक बात हमेशा याद रखना जहां लक्ष्य स्पष्ट है और काम को करने की कोई बड़ी वजह है वहां आलस हो ही नहीं सकता। 

दोस्तों अगर आपको ये कहानी अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ जरूर Share करियेगा। धन्यवाद 

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