एक बार की घटना है महात्मा बुद्ध के सबसे प्रिय और करीबी शिष्य आनंद एक बार कहीं जा रहे थे तभी रास्ते में उन्होंने देखा कि एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति एक चट्टान के ऊपर बैठकर रो रहा है। यह देखकर आनंद वही रुक गए और उस व्यक्ति के पास जाकर उसके दुखी होने का कारण पूछा। वह व्यक्ति अपने आंसू पोंछते हुए बोला, “मैं यही पास के ही गांव का रहने वाला एक बदनसीब व्यापारी हूं। मैं जो भी काम करता हूं, वह बिगड़ जाता है। व्यापार के चक्कर में मैंने अपनी मां और पत्नी के गहने गंवा दिए, अपने परिवार को खो दिया और यहां तक कि अब तो मेरा घर और खेत भी गिर भी पड़े हैं। मुझे तो लगता है कि मेरी किस्मत ही खराब है।”
उस व्यक्ति की बात सुनकर आनंद बोले, “तुमसे किसने कहा कि तुम्हारी किस्मत खराब है? जरा मैं भी तो जानूं कि तुम्हारी किस्मत में क्या खराबी है?”
व्यक्ति बोला, “पहले मैं खेती करता था, लेकिन हर साल उसमें घाटा होता था। कभी सूखा पड़ जाता, तो कभी-कभी ज्यादा बारिश से फसल खराब हो जाती, कभी आवारा पशु फसल को नुकसान पहुंचाते, तो कभी कीड़े-मकोड़े और बीमारियां फसल को बर्बाद कर देते। खेती से मेरे परिवार का गुजारा ठीक से नहीं चल पा रहा था, जिससे परेशान होकर मैंने खेती करना छोड़ दिया और व्यापार करने का निश्चय किया। मैंने पत्नी के गहने बेचकर अपना व्यापार शुरू किया, लेकिन मेरा व्यापार नहीं चला।
शुरू-शुरू में तो मेरे परिवार वालों ने थोड़ी-बहुत मेरी आर्थिक मदद की, मेरा साथ दिया, लेकिन जैसे-जैसे मुझे नुकसान होने लगा, मेरे परिवार वालों ने भी मेरा साथ छोड़ दिया और मुझसे दूर हो गए। अब तो वे मुझे देखकर अपनी नजरें फेर लेते हैं और मुझे ही अपने परिवार की गरीबी और दुर्दशा का जिम्मेदार ठहराते हैं। अब तो मुझे अपना जीवन ही व्यर्थ लगने लगा है। अक्सर मेरे मन में ख्याल आते हैं कि अपना जीवन ही खत्म कर लूं। और मैं आज यहां आत्महत्या करने ही आया था, लेकिन हिम्मत नहीं जुटा पाया। इसीलिए इस पत्थर पर बैठकर रो रहा था। दूसरी तरफ मेरा एक मित्र है।
हम दोनों ने एक ही साथ व्यापार शुरू किया था, लेकिन वह आगे बढ़ गया और मैं पीछे रह गया। मेरी इस असफलता की वजह से वह हर समय मुझे नीचा दिखाने का प्रयत्न करता रहता है। और वह अक्सर मेरे घर आकर अपने सफलता की बड़ी-बड़ी बातें करता है। मेरे घर वालों को बताता है कि कैसे उसने इतनी कड़ी मेहनत करके इतना बड़ा व्यापार खड़ा कर लिया है। और वह अक्सर अपने फलते-फूलते व्यापार के किस्से मुझे, मेरी पत्नी और मेरे मां-बाप को सुनाता रहता है। जिसे सुनकर मेरे घर वाले उसकी प्रशंसा करते हैं, लेकिन मेरी बुराई करते हैं। मुझे नकारा और कम दिमाग का कहते हैं। मेरी पत्नी और मां मुझे बात-बात पर ताने मारती हैं। जिससे मुझे बहुत दुख पहुंचता है और कई बार खुद की नाकामयाब पर क्रोध भी आता है। लेकिन मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?”
यह सुन आनंद ने पूछा, “तुम्हें किस बात का दुख होता है? अपने असफल होने का या फिर मित्र के सफल होने का?”
सवाल सुनकर वह व्यक्ति एक पल के लिए सोच में पड़ गया, फिर बोला, “अगर सच कहूं, तो मुझे अपने असफल होने का उतना दुख नहीं होता, जितना कि मित्र के सफल होने का होता है।”
आनंद ने अगला प्रश्न किया, “अगर तुम्हारा मित्र व्यापार में असफल हो जाता और तुम सफल हो जाते, तो क्या तुम खुश होते?”
व्यक्ति ने कहा, “हां, मुझे बहुत खुशी होगी।”
आनंद बोले, “इसका मतलब कि तुम्हारी खुशी तुम्हारे मित्र पर निर्भर करती है। अगर वह चाहे तो तुम्हें खुश कर सकता है, और अगर वह चाहे तो तुम्हें दुखी भी कर सकता है। तुम स्वयं से ना तो खुश हो सकते हो और ना ही दुखी हो सकते हो।”
**आनंद की बातें सुनकर व्यक्ति थोड़ी देर के लिए सोच में पड़ गया, फिर बोला, आपकी बातें सुनकर मुझे कुछ आशा बंध रही है।” तभी भिक्षु आनंद ने कहा, “जब हम किसी से आशा बांध लेते हैं, तो उस पर निर्भर हो जाते हैं। फिर हमारी खुशी और दुख भी उसी पर निर्भर करने लगते हैं। इसीलिए सबसे बेहतर है कि तुम स्वयं से आशा बांधो। जब तुम ऐसा करोगे और साथ ही पूरी मेहनत और ईमानदारी से काम करोगे, तो तुम्हें सफलता अवश्य प्राप्त होगी।”
“तुम्हें लगता है कि तुम्हारा मित्र तुम्हें नीचा दिखाने आता है, दुखी करने आता है। पर अगर ईमानदारी से विचार करो, तो वह बातें तो सच्ची ही कहता है। वह अपने संघर्ष और अनुभव की बातें बताता है। तुम उन बातों से बहुत कुछ सीख सकते हो। तुम्हें तो इसके लिए उसका धन्यवाद करना चाहिए कि तुम्हें घर बैठे इतने सारे अनुभव मिल रहे हैं। तुम उन अनुभवों का लाभ उठाओ, नई शुरुआत करो, ईमानदारी से कर्म करते जाओ, हार मत मानो। एक दिन तुम्हें सफलता जरूर मिलेगी। आज तुम जिसे अपना बुरा वक्त या बुरी किस्मत कह रहे हो, एक दिन यह बदल जाएगी।
और इसी के साथ तुम्हारी सोच और विचार भी बदल जाएंगे। और देखना, जब तुम्हारा अच्छा समय शुरू हो जाएगा, तब तुम्हारा मित्र भी तुम्हें अपनी सफलताओं की कहानियां नहीं सुनाएगा। तब वह तुम्हें अपनी असफलताओं और परेशानियों की बातें सुनाएगा, ताकि तुम उसकी बातें सुनकर भ्रमित हो जाओ, तुम्हारा आत्मविश्वास डगमगा जाए, और तुम गलत निर्णय ले सको। लेकिन उस समय भी तुम्हें अपनी ही बुद्धि का प्रयोग करना होगा, स्वयं पर विश्वास रखना होगा। जिस प्रकार तुम्हारा मित्र आज तुम्हें दुखी करने आता है, वैसे ही वह उस समय भी तुम्हें दुखी करने आएगा। क्योंकि जिस तरह उसे दुखी देखकर तुम्हें मजा आता है, ठीक उसी तरह उसे भी तुम्हें दुखी देखने में उतना ही मजा आता है।”
व्यक्ति ने कहा, “आपने सही कहा, मुनिवर। लेकिन मेरा सबसे बड़ा दुख यह है कि मेरे परिवार के लोग भी इसमें शामिल हैं। वास्तव में मैं तो अपने परिवार के लिए अच्छा करना चाहता था, उन्हें खुश रखना चाहता था। लेकिन वह भी मेरी बातों और भावनाओं को नहीं समझ रहे, मुझे ही गलत कहते हैं। और पिछले कुछ समय से तो वह मेरे साथ भी नहीं हैं।”
भिक्षु आनंद ने उस व्यक्ति को समझाते हुए कहा, “हम हमेशा चाहते हैं कि हम जो कुछ भी करें, लोग उसके लिए हमारी प्रशंसा करें। लेकिन आमतौर पर ऐसा नहीं होता। लोग हमारे प्रयासों की तारीफ नहीं करते, जिससे हम दुखी हो जाते हैं। हमें लगने लगता है कि हमारे मित्र, रिश्तेदार, घर वाले, सब स्वार्थी हैं। लेकिन अगर तुम किसी को अपना परिवार मानते हो और उसके लिए कुछ करना चाहते हो, तो फिर तुम ऐसा क्यों सोचते हो कि तुम दूसरों के लिए कुछ कर रहे हो? वास्तव में तुम अपनी खुशी के लिए कुछ कर रहे हो। क्योंकि उन्हें खुश देखकर तुम्हें खुशी होती है। अगर ऐसा करते समय तुम मानकर चलते हो कि तुम दूसरों के लिए कुछ कर रहे हो, तो तुम दुखी रहोगे। लेकिन अगर तुम्हें लगता है कि तुम स्वयं के लिए कर रहे हो, तो तुम खुश रहोगे। क्योंकि जब हम स्वयं के लिए कुछ करते हैं या करना चाहते हैं, तो हमें इसके लिए शांतोना की जरूरत नहीं पड़ती।”
भिक्षु आनंद की यह बातें सुनकर उस व्यक्ति के चेहरे के भाव पूरी तरह से बदल गए। उसने कहा, “आप सही कह रहे हैं, मुनिवर। मैं समझ गया कि अब तक मेरी किस्मत इसीलिए खराब थी, क्योंकि वह दूसरों के हाथों में थी। लेकिन अब से मैं अपनी किस्मत को अपने हाथों में रखूंगा। फिर से प्रयत्न करूंगा, पूरी लगन और ईमानदारी से काम करू और जैसा आनंद मुनि ने कहा था, उस व्यक्ति ने नई शुरुआत की। उसने पहले की गलतियों से सीख लिया और अब वो हर काम पूरी ईमानदारी और लगन से करता था। वह असफलताओं से नहीं घबराता था, बल्कि उनसे सीखकर आगे बढ़ता था। धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाने लगी। उसका छोटा सा व्यापार चल पड़ा और कुछ ही सालों में वो फिर से एक सफल व्यापारी बन गया। इस दौरान उसने अपने जीवन के मूल्यों को भी समझा। उसने सीखा कि खुशी दूसरों से मिलने वाली प्रशंसा में नहीं, बल्कि खुद के प्रयासों और ईमानदारी में निहित है।
लेकिन फिर वही समय का चक्र घूम गया। दुर्भाग्य की काली घटा उस पर फिर से मंडराने लगी। पड़ोसी राज्य के राजा ने उसके राज्य पर हमला कर दिया। लूटपाट में उसका सारा व्यापार तबाह हो गया। घर-बार सब छिन गया। जान बचाने के लिए उसे अपने परिवार के साथ पलायन करना पड़ा। इधर-उधर भटकते-भटकते वो एकदम दरिद्र अवस्था में पहुंच गया। उसका बेटा बीमार पड़ गया और उसके पास बेटे के इलाज के लिए एक पैसा भी नहीं था। तभी उसे आनंद मुनि की दी हुई डिबिया याद आई। उसने उसे खोला और उसमें लिखी पंक्तियों को पढ़ा – “यह वक्त भी गुजर जाएगा, दोस्त।” उसकी आंखों में छाया हुआ अंधेरा छंट गया और एक उम्मीद की किरण जगी। उसने सोचा कि ये परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों ना हों, ये हमेशा नहीं रहेंगी। एक दिन जरूर आएगा जब ये मुश्किलें गुजर जाएंगी और उसका जीवन भी फिर से सुखदायी मोड़ लेगा।
उसने निराशा को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया। वो अपने बेटे को इलाज दिलाने के लिए हर संभव प्रयास करने लगा। उसने मजदूरी करके थोड़ा बहुत पैसा कमाया और बेटे का इलाज शुरू करवाया। धीरे-धीरे उसके बेटे का स्वास्थ्य सुधरने लगा। इस दौरान उसने हस्तशिल्प सीखा और उसी से अपना छोटा सा काम शुरू किया। वो दिन रात मेहनत करता और धीरे-धीरे उसका काम भी चलने लगा। कुछ ही समय में वो फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो गया था। हालांकि वो अपने पुराने वैभव को नहीं पा सका, लेकिन वो अब खुश था। उसके पास एक स्वस्थ परिवार था और वो ईमानदारी से अपनी मेहनत से अपना जीवन चला रहा था। इस अनुभव ने उसे और भी मजबूत बना दिया था। उसने सीखा था कि जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, लेकिन आशा और लगन से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है।
एक दिन अचानक उसे पता चला कि उसके पुराने मित्र का व्यापार डगमगा गया है और वो अब पहले जैसा सफल नहीं रहा। दिल में बदले की कोई भावना नहीं रखते हुए उसने अपने मित्र की मदद करने का फैसला किया। उसने उसे अपने अनुभव बताए और हस्तशिल्प का काम सीखाने की पेशकश की। उसके मित्र ने पहले तो गर्व के कारण मना कर दिया, लेकिन उसके बार-बार समझाने पर आखिरकार मान गया। धीरे-धीरे उसने भी हस्तशिल्प का काम सीखा और उसका भी जीवन फिर से संवरने लगा।
इस घटना ने उस व्यक्ति को और भी संतुष्ट किया। उसने अपने जीवन में आखिरकार सही मायने में खुशी पा ली थी। वो आनंद मुनि से मिले मार्गदर्शन के लिए आज भी उनका आभारी था। उसने सीखा था कि जिंदगी में सफलता या असफलता कोई मायने नहीं रखते, जो मायने रखता है वो है ईमानदारी, मेहनत और सही रास्ते पर चलना। और यही वह जीवनशैली थी जिसे उसने अब अपना लक्ष्य बना लिया था। वो दूसरों की मदद कर उन्हें भी इस रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करता था। इस तरह अपने संघर्षों और अनुभवों के माध्यम से वो अब दूसरों के लिए मार्गदर्शक बन गया था। कई लोग, जो निराशा के गर्त में फंसे थे, उसके पास आते और उसकी कहानी सुनकर प्रेरणा लेते। वह उन्हें सिखाता कि दुर्दशा या दुर्भाग्य किसी का स्थायी साथी नहीं होता। हार नहीं माननी चाहिए, बल्कि हर असफलता को सीखने के अवसर के रूप में देखना चाहिए। वह उन्हें समय के चक्र पर भरोसा रखने और हर परिस्थिति में ईमानदारी और परिश्रम से काम करने की सीख देता।
उसके मित्र को भी उसने बहुत कुछ सिखाया। धीरे-धीरे घमंड का बोझ उसके कंधों से हल्का हुआ और उसने सच्ची सफलता का अर्थ समझा। अब दोनों मिलकर अपनी छोटी-सी हस्तशिल्प की दुकान चलाते थे और आसपास के लोगों की मदद करते थे। उनके जीवन में भौतिक वैभव तो कम हो गया था, लेकिन बदले में उन्हें आत्मनिर्भरता, सच्ची संतुष्टि और मान-सम्मान मिला था।
हर शाम, जब दिन ढलता और आसमान गुलाबी रंग में रंगता, वह अपनी पत्नी और बेटे के साथ नदी के किनारे टहलता। सुख-दुख की कहानियां सुनाता, और उनसे हंसी-मजाक करता। उसके चेहरे पर अब शांति और संतोष झलकते थे। उसने सीखा था कि असल खुशी धन-दौलत में नहीं, बल्कि अपने प्रियजनों के साथ, ईमानदारी से कमाए हुए धन से बने पल बिताने में होती है। वह जानता था कि जीवन का यह सफर अभी बहुत बाकी है, लेकिन अब उसे किसी प्रकार की चिंता नहीं थी। क्योंकि वह जानता था कि वह हर मुश्किल का सामना करेगा, हर चुनौती का डटकर मुकाबला करेगा, और हर परिस्थिति में वह हंसता हुआ आगे बढ़ेगा। क्योंकि अब उसकी राहों में आनंद मुनि के शब्द ही मशाल की तरह जल रहे थे – “यह वक्त भी गुजर जाएगा, दोस्त।”
उसकी कहानी आसपास के लोगों के लिए प्रेरणा बन गई। वह एक जीवित उदाहरण था कि किस तरह दुःख भरे अंधेरे को पार कर उम्मीद का सूरज उग सकता है। और इस तरह, वह अनजाने ही, कई ज़िंदगियों में रौशनी फैला रहा था, ठीक उसी तरह जैसे उस दिन मुनि आनंद ने उसके जीवन में उम्मीद की किरण जगाई थी।