खुद पे ध्यान दोगे तो पूरी दुनिया तुम पे ध्यान देगी | Best Buddhist Story1 min read

पुराने समय की बात है नगर में रहने वाला सबल नाम का एक लड़का अपनी जिंदगी से बहुत निराश था उसकी निराशा का कारण यह था कि वह अब तक कुछ भी नहीं कर रहा था उसके मां-बाप उसे ताने मारते कि तेरे सारे मित्र कुछ ना कुछ कर रहे हैं लेकिन तू अभी भी घर में ही बैठा हुआ है मित्रों के बीच भी अक्सर उसका मजाक ही बनता, वह कहीं जाता तो लोग उससे पूछते कि क्या कर रहे हो उसे यह बताने में बड़ी शर्म आती कि अभी वह कुछ भी नहीं कर रहा धीरे-धीरे उसने रिश्तेदारों के घर जाना और लोगों से मिलना जुलना कम कर दिया। 

वह ज्यादातर समय अपने घर में ही बैठा रहता वह अकेले में रोता भगवान को कोसता और अपनी किस्मत को दोस देता। अब उसे अपनी जिंदगी बोझ सी लगने लगी थी कभी-कभी वह सोचता कि जब वह कुछ करने के लायक ही नहीं है तो फिर उसके जिंदा रहने का भी क्या फायदा उसे तो मर जाना चाहिए। 

एक दिन वो अपने नगर की एक सड़क से गुजर रहा था तभी उसने देखा कि एक गुरु दुख के ऊपर प्रवचन दे रहे हैं वह भी वही भीड़ में पीछे बैठ गया और गुरु के प्रवचन सुनने लगा। गुरु बोल रहे थे कि दुख एक गुरु की भांति होता है जो हमें जीवन की सच्चाई दिखता है और हमें सही से जीवन जीने का तरीका सिखाता है, आप चाहे तो अपने दुख रूपी गुरु से जीवन जीना भी सीख सकते हैं और चाहे तो उसी दुख में डूब कर बैठ कर रो भी सकते हैं। 

सबल भी गुरु की यह सारी बातें ध्यान से सुन रहा था लेकिन उसे गुरु की यह बातें सही नहीं लगी उसने खड़े होकर कहा दुख कुछ भी सिखा कर नहीं जाता सिर्फ पीड़ा देकर जाता है। दुख की पीड़ा अनंत होती है ऐसा लगता है इसके बाद कुछ भी नहीं होने वाला कुछ भी नहीं मिलने वाला मृत्यु भी उसके सामने छोटी लगने लगती है।  

गुरु ने कहा आखिर क्या दुख है तुम्हें? सबल ने अपना सारा दुख गुरु के समक्ष में सुनाया और पूछा क्या आपके पास मेरे  दुःख का कोई समाधान है यह सुन गुरु मुस्कुराए और बोले, जिस दिन तुम्हारे जीवन में सच्चा दुख आए उस दिन मेरे पास आना मैं तुम्हारे दुख का समाधान अवश्य करूंगा इतना कहकर गुरु वहां से चले गए। सबल ने सोचा क्या मेरा दुख सच्चा नहीं है?! क्या जीस दुख से मैं गुजर रहा हूं वह झूठा है?! 

कोई भी मेरे दुख को नहीं समझ सकता जब मां-बाप नहीं समझ पाए तो गुरु क्या समझेंगे।
अपने दुखों से परेशान होकर सबल ने एक निर्णय लिया कि अब कुछ करके दिखाएगा उसने एक छोटा सा व्यापार शुरू किया लेकिन उसमें उसे सफलता नहीं मिल रही थी पर उसके घर वाले खुश थे कि वह कुछ तो प्रयास कर रहा है वह अपने व्यापार में जुटा रहा और उसे धीरे-धीरे सफलता भी मिलने लगी फिर उसने रफ्तार पकड़ ली और सिर्फ 3 साल के अंदर ही वह एक बड़ा व्यापारी बन गया। अब सबल के चारों तरफ ऐसे बहुत से लोग थे जो उसकी चिंता करते थे उसे पसंद करते थे उसके काम की प्रशंसा करते थे। 

अब उसके घर वाले भी उसकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे दिन प्रतिदिन उसके मित्रों की संख्या बढ़ती जा रही थी अब वह अपनी जिंदगी से बहुत ही खुश था उसके कुछ मित्रों ने उसे सलाह दी कि जब तुम बड़े व्यापारी बनकर इतने खुश हो तो सोचो कि अगर तुम इस नगर के इस राज्य के सबसे बड़े व्यापारी बन जाओ तो तुम्हारे पास कितना सुख होगा कितने लोग तुमसे जुड़ना चाहेंगे तुम्हारा कितना यश फैलेगा स्वयं राजा भी तुमसे मित्रता करना चाहेंगे और जरूरत पड़ने पर तुमसे ही धन उधार लेंगे। मित्रों की यह बात सबल के मन में घर कर गई अब उसने और भी धन कमाने का प्रयास शुरू कर दिया लेकिन उसे यह सब कुछ बहुत ही जल्दी चाहिए था।

वह ये सब कुछ प्राप्त करने में अपना ज्यादा समय बर्बाद नहीं करना चाहता था इसलिए उसने ऐसे भी कार्य करने शुरू कर दिए जो उचित नहीं थे उसने बड़ी मात्रा में अपने मित्रों से धन उधार लेना शुरू कर दिया ज्यादा मुनाफा कमाने की लालच में अपने अपने सामान में मिलावट करने लगा उसने दूसरे व्यापारियों के खिलाफ षड्यंत्र भी रचे उन्हें डराया धमकाया जैसा-जैसा उसके मित्र उसे कहते गए वह वही करता गया वह इन तरीकों से ज्यादा धन तो कमा रहा था लेकिन अब उसके जीवन में सुकून नहीं रह गया था उसके मन की शांति गायब हो गई थी उसे रातों में नींद नहीं आती थी वह किसी उधेड़बुन में लगा रहता था सुख साधन की सारी वस्तुएं होने के बाद भी उसे किसी में सुख नहीं मिल रहा था। 

एक दिन सबल अपनी बघ्घी में सवार होकर कहीं जा रहा था तभी रास्ते में उसे वही पुराने गुरु जिनसे वो पहले भी मिल चुका था उन्ही गुरु का आश्रम दिखा वह रुक गया वह गुरु के पास जाकर बोला गुरुदेव आपने कहा था कि जब तुम्हारे जीवन में सच्चा दुख आए तब मेरे पास आना अब मैं बहुत दुखी हूं मेरे रातों की नींद गायब हो गई है मुझे कहीं सुकून नहीं मिल रहा इस तरीके के सवालों से अपनी सारी समस्या गुरु के सामने सुनाई। 

गुरु ने कहा जब तुम मुझसे पहली बार मिले थे तब भी तुम किसी दुख में थे तुमने उस दुख से क्या सीखा? 

सबल ने कहा मैंने सीखा कि सिर्फ सोचने और चिंता करने से कुछ नहीं होता अपनी सोच को सच करने के लिए काम करना पड़ता है और सिर्फ काम करने से भी कुछ नहीं होता अपने काम को अंतिम पड़ाव तक ले जाना भी आवश्यक होता है चाहे रास्ते में कितनी मुश्किलें आएं। मन कितना ही निराश हो कितना भी लगे कि अब आगे कुछ भी नहीं होने वाला तब भी यह मान कर चलो कि मैं जो भी कर रहा हूं उसमें सफल अवश्य होऊंगा लोग सिर्फ सफल व्यक्ति को ही सम्मान देते हैं फिर चाहे कोई कितना ही अच्छा क्यों ना हो वह लोगों की नजरों में बसा होता है। 

यह सब सुन गुरु मुस्कुराए और बोले यह असली दुख नहीं है जब तुम्हारे जीवन में असली दुख आए तब मेरे पास आना मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा। 

सबल ने जाते समय गुरु को सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा भेंट किया घड़ा देखकर गुरु ने कहा यह मेरे किसी काम का नहीं इसे उस पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर दफना दो। सबल ने गुरु के कहे अनुसार घड़े को पेड़ के नीचे दफना दिया और वहां से चला गया कुछ दिनों तक तो व्यापार अच्छी तरक्की कर रहा था लेकिन गलत व्यापार की वजह से धीरे-धीरे उसे व्यापार में घाटा होने लगा उसकी सारी धन संपदा धीरे-धीरे खत्म होने लगी और एक दिन ऐसा आया जब उसके पास कुछ भी नहीं बचा और वह कर्ज से लद चुका था लेकिन वह निश्चिन्त था क्योंकि उसने सारा कर्ज अपने मित्रों से ही लिया था वह सोचता था कि उसके मित्र बुरे समय में उसका साथ देंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बुरा समय आते ही मित्रों ने ही सबसे पहले अपना उधार मांगना शुरू किया और उधार वापस न करने पर जान से मारने की धमकी भी दी। उसके शुभचिंतक उसे चाहने वाले सब उससे दूर हो गए उसके वह मित्र जो उसके साथ मौज मस्ती किया करते थे अब उससे दूर भागने लगे उसके परिवार वाले उसे उसकी गलतियों और कमियां  गिनवाने लगें। 

उसकी सारी संपत्ति नीलाम हो गई और उसके पास कुछ भी नहीं बचा उसने अपने पिता से सहायता मांगी तो पिता ने कहा मेरे पास यह थोड़ी सी ही संपत्ति है अगर मैं यह भी तुम्हें दे दूंगा तो तुम्हारी माँ को कहां रखूंगा ये संपत्ति ही हमारा आखरी सहारा है सबल की भीतर बहुत गहरा दुख था उसके आसपास ऐसा कोई भी नहीं था जो उसके दुख को समझ सके उसे संभाल सके लोगों से मिले इस धोखे और विश्वास घात की वजह से वह अंदर तक टूट गया उसे लगने लगा अब जीने का क्या मतलब अब तो मृत्यु ही एकमात्र सहारा है वह आत्महत्या करने एक पहाड़ी की तरफ जा रहा था कि तभी उसे याद आया गुरु ने कहा था जब तुम्हारे जीवन में असली दुखा आए तब मेरे पास आना। सबल गुरु के पास गया और अपना सारा दुख सुनाया। 

वह आंखों में आंसू भर कर बोला मेरे इस दुख का समाधान कीजिए गुरुदेव गुरु ने कहा जब तुम्हारे जीवन में असली दुख आए तब मेरे पास आना मैं उसका समाधान अवश्य करूंगा। सबल ने कहा क्या अभी जो मेरे जीवन में घट रहा है वह दुख नहीं है आखिर असली दुख होता क्या है गुरुदेव? 

गुरु ने कहा सबसे पहले तुम यह बताओ कि तुमने अपने इस दुख से क्या सीखा सबल ने कहा मैंने सीखा कि जो लोग हमारी सफलता हमारी तरक्की की वजह से हमारे जीवन में आए हैं वह हमें धोखा अवश्य देंगे क्योंकि वह बुरे समय में हमारे साथ खड़े नहीं होंगे वह केवल अच्छे समय में हमारा फायदा उठाएंगे और बुरे समय में छोड़कर चले जाएंगे भरोसा केवल उन्हीं लोगों पर करना चाहिए जो हमारे बुरे समय में असफलता के समय में हमारे साथ खड़े रहते हैं लेकिन ऐसे लोग बहुत ही कम होते हैं पर जिसके पास होते हैं उन्हें उनकी कद्र करनी चाहिए उनका अपमान नहीं करना चाहिए। मैंने यह भी सीखा कि कभी किसी के खिलाफ षड्यंत्र नहीं रचना चाहिए इमानदारी और धैर्य के साथ अपना काम करना चाहिए और कभी लालच नहीं करना चाहिए। 

अपना सारा दुख और अनुभव बताने के बाद सबल आंखों में आंसू भरकर गुरु के सामने बैठा रहा थोड़ी देर बाद गुरु उठे और सामने के उस पेड़ के नीचे गड्ढा खोदकर वह घड़ा बाहर निकाला जो सोने के सिक्कों से भरा हुआ था और उसे सबल को दे दिया और कहा जब तुम्हारे जीवन में असली दुखा आए तब मेरे पास आना सबल ने गुरु को धन्यवाद दिया और उन्हें प्रणाम कर वहां से चला गया। 

उसने उस  घड़े के सोने के सिक्कों से अपना क़र्ज़ उतारा और बचे हुए सिक्कों से एक छोटा व्यापार शुरू किया अब वह एक छोटा व्यापारी बनकर भी खुश था उसने पूरी लगन और ईमानदारी से व्यापार किया देखते ही देखते वह अपने नगर का फिर एक बड़ा व्यापारी बन गया उसका जीवन खुशियों और सुविधाओं से भर गया लेकिन कोई कितना भी अच्छा हो कितना भी अच्छा काम करे दान करे पुन्य करे लोगों की मदद करे लेकिन जीवन में दुख तो आता ही है तो सबल के जीवन में भी दुख आया उसके माता-पिता की मृत्यु के रूप में। 

वह दोनों एक ही दिन मृत्यु को प्राप्त हो गए सबल अपने माता-पिता से बहुत प्रेम करता था इसीलिए उसे उनकी मृत्यु से बहुत गहरा घाव पहुंचा वह उन दोनों के पार्थिव शरीर को श्मशान घाट ले गया जहां उनकी अंतिम क्रिया की गई। वहाँ उसने अपने माता-पिता के शरीर को जलते हुए देखा तो उसका मन बेचैन हो गया उसके अंदर बहुत से प्रश्न उठने लगे वह घर वापस आया तो उसने अपने माता-पिता के घर और संपत्ति को देखा।

जिसके लिए उसके पिता हमेशा लड़ते रहते थे आज वह लावारिस पड़ी है आज उसकी देखरेख करने वाले उसके लिए लड़ने वाले इस दुनिया से चले गए उसके पिता ने जो भी कमाया था जो भी बनाया था वह सब यहीं रह गया था एक दिन पहले तक किसी से भी अपनी संपत्ति के लिए लड़ जाने वाले उसके पिता आज खुद इस दुनिया से अलविदा हो गए थे उसका मन इसी तरह के अनेक विचारों के भवर में फंसा हुआ था उसे अंदर से अकेलापन और डर महसूस हो रहा था उसे कुछ खालीपन सा महसूस हो रहा था उसे लग रहा था कुछ तो है जिसे वह समझ नहीं पा रहा इसीलिए वह गुरु के पास गया उसे देखते हैं गुरु ने कहा। क्या जीवन में कोई दुख है? 

सबल ने कहा वैसे तो जीवन में कोई दुख नहीं है गुरुदेव सब सुख है सब अच्छा चल रहा है लेकिन आज मेरे माता-पिता की मृत्यु हो गई इस घटना से मेरा मन बहुत दुखी और बेचैन है। 

गुरु ने कहा इसमें दुखी होने वाली कौन सी बात है एक दिन तो सभी के प्रिय जनों को मारना ही है हमेशा जीवित न तो कोई रहा है और ना ही कोई रहेगा एक दिन तो तुम्हें भी मरना ही है हो सकता है कल ही मर जाओ या आज भी मर सकते हो। सबल ने कहा यह आप क्या कह रहे हैं गुरुदेव की मैं भी मर जाऊंगा पर मैं तो अभी जवान हूं गुरु ने कहा इस भ्रम में तो सभी जी रहे हैं की मृत्यु दूसरों को आती है बूढ़ों को आती है लेकिन बूढ़ों के सामने ही जवान मर जाते हैं बच्चे मर जाते हैं मृत्यु का किसी की उम्र से कोई संबंध नहीं यह तो कभी भी कहीं भी और किसी को भी आ सकती है। 

गुरु की यह बातें सबल के मन में घर कर गई और वह चुपचाप वहां से चला गया लेकिन उसका मन अभी बेचैन था अब भी वह कुछ खालीपन सा महसूस कर रहा था वह पूरे दिन अपने बारे में सोचता रहता कि वह कौन है इस दुनिया में क्यों आया है क्या सिर्फ चीजों को उपभोग करना और मरना ही जीवन का लक्ष्य है ऐसे ही बहुत से प्रश्न उसके मन में लगातार उठ रहे थे लेकिन उसे अपने किसी भी प्रश्न का उत्तर नहीं मिल पा रहा था और उसका दुख दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा था इसीलिए कुछ दिनों बाद वह फिर गुरु के पास पहुंचा और बोला गुरुदेव मैं बहुत दुखी हूं क्योंकि मैं यह नहीं जान पा रहा कि मैं कौन हूं और इस दुनिया में क्यों आया हूं? 

यह सुन गुरु मुस्कुराए और बोले आज पहली बार तुम्हारे जीवन में सच्चा दुख पैदा हुआ है वास्तव में यही है जो दुख कहलाने के लायक है कि हमें पता नहीं कि हम कौन हैं क्यों आए हैं क्या करना है कैसे करना है।  

सबल ने कहा गुरुदेव मेरे इस दुख का समाधान कीजिए। गुरु ने कहा हम सभी इंसान जीवन भर क्या इकट्ठा करते रहते हैं? 

सबल ने कहा हम सभी जीवन भर धन संपत्ति मान सम्मान परिवार मित्र शत्रु पद प्रतिष्ठा इत्यादि इकट्ठा करते रहते हैं। गुरु ने कहा क्या  इकठ्ठा की हुई सभी चीजों में से एक भी चीज अपने साथ ले जा सकते हैं? 

सबल ने कहा नहीं गुरुदेव इनमें से कुछ भी साथ नहीं जाता मेरे माता-पिता के साथ भी कुछ नहीं गया सब तो यहीं छूट गया घर परिवार संपत्ति सब कुछ। गुरु ने कहा अब मेरी बातों को ध्यान से सुनो इस दुनिया में हमें जो इकट्ठा करना चाहिए वह तो हम कभी इकट्ठा करते ही नहीं चीज हमारे सामने ही होती हैं लेकिन हम उन्हें देखने का प्रयास ही नहीं करते इस दुनिया में हमें जिस चीज को इकट्ठा करना है वह हम खुद हैं हमें खुद को ही इकट्ठा करना है ताकि जब मृत्यु हो तो हम एक हो सके और खुद को पहचान सकें, हम भीतर से बटे हुए हैं हम बटे हुए हैं प्रेम में नफरत में क्रोध में जलन में क्रूरता में धन में संपत्ति में पद में प्रतिष्ठा में मान में पहचान में धर्म में जाति में ऐसे ही सैकड़ो हजारों चीजों और वासनाओं में हम बटे हुए हैं।

हम टुकड़ो में जीवन जी रहे हैं इस बंटवारे की वजह से हमारी चेतना कभी एक नहीं हो पाती हमारी चेतना शक्ति बिखर गई है इसलिए हमारे पास इतना भी समय नहीं है इतनी भी ऊर्जा नहीं है कि हम मुड़कर एक बार अपने भीतर देख सके वास्तव में जो धन की कमी सुविधाओं की कमी मान सम्मान की कमी को लोग दुख समझते हैं और जीवन भर उसे दुख-दुख बोलकर रोते रहते हैं और उनका समाधान खोजने का प्रयास करते रहते हैं उन्हें इसका समाधान कभी मिलेगा ही नहीं क्योंकि जिन्हें लोग दुख कहते हैं वह असली दुख है ही नहीं वह तो सिर्फ इंसान की चाहत है। एक इच्छा है जिसकी पूर्ति कभी नहीं की जा सकती इसीलिए व्यक्ति को ऐसे दुखों का कभी समाधान मिला ही नहीं इसीलिए इन सब के ऊपर अगर अपने दुखों का परम समाधान चाहिए तो सबसे पहले अपने आप को इकट्ठा करो अपनी ऊर्जा को इस संसार से वापस खींचे और एकत्रित करो अपने ऊपर ध्यान दो खुद पर ध्यान लगाओ मृत्यु से पहले अपने आप को पहचान लो ऐसे ही बिखरे हुए मत चलो। 

सबल ने कहा तो क्या गुरुदेव हमें संसार छोड़ देना चाहिए अपने सभी इच्छाओं को मार देना चाहिए किसी से प्रेम नहीं करना चाहिए धन संपत्ति नहीं इकट्ठा करनी चाहिए मान सम्मान की आशा छोड़ देनी चाहिए गुरु ने कहा एक बिखरे हुए मनुष्य के अंदर से कामनाएं इच्छाएं और वासनाएं ऐसे ही निकलते हैं जैसे पहाड़ से कोई पत्थर गिर रहा हो जिस पर पहाड़ का कोई नियंत्रण नहीं है सिवाय देखने परेशान होने और कुछ खोने के इसी प्रकार एक बिखरे हुए मनुष्य की इच्छाएं अनियंत्रित और दुखदाई होती हैं उसका अनियंत्रित मन कुछ भी इच्छाएं और कल्पनाएं करता रहता है और दुखी होता रहता है लेकिन जब व्यक्ति एकत्रित हो जाता है तो वह जो भी करता है सब उसके नियंत्रण में रहता है तभी इच्छाएं भी उसकी इच्छा से निकलती हैं। 

सबल ने कहा गुरुदेव आपने मेरे सच्चे दुख का समाधान कर दिया आपका बहुत-बहुत धन्यवाद आबसे मैं खुद को एकत्रित करने का प्रयास करूंगा गुरु ने कहा मानव शरीर में बहुत ऊर्जा है बहुत शक्ति है पर यह बेकार के कामों में  बटकर रह गई है फ़ालतू की चीजों में लगी रहती है यह ऐसा ही है जैसे कि एक अत्यंत शक्तिशाली मशीन किसी बच्चे के हाथों में दे दी गई हो बिना किसी नियंत्रण और जानकारी के और वो बच्चा बस इसकी शक्ति को कहीं भी बर्बाद कर रहा है। इसीलिए अपने चेतन की शक्ति पर ध्यान दो और इसे एकत्रित करो सबल को अपने प्रश्नों का उत्तर मिल चुका था उसने गुरु को धन्यवाद किया और चुपचाप वहां से चला गया। 

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